अमृतसर
पंजाब और पंजाबियत की बहुमूल्य विरासत को संजोए अमृतसर लाहौर मार पर स्थित खालासा काॅलेज सहज ही लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता है। इसकी भव्यता देख कर लोग इसे किसी राजा-महाराज का महल समझ बैठते हैं।
सिख कौम की पहचान कोबनाए रखने के लिए सिंह सभा लहर केसदस्यों ने खालसा काॅलेज की आधारशिला पांच मार्च 1892 में रखा। इस दौर ें बडी संख्या में क्रिश्चियन काॅलेजों के खुलने से लोगों का रूझान इसाई मिशनरियों की तरफ बढने लगा था। इसके चलते सिंह सभा के सदस्योंने फैसला किया कि सिख कौम का भी अपना काॅलेज होना चाहिए।
इसी सोच को आगे बढाते हुए पंजाब के राजा-माहाराजाओं के सहयोग से खालसा काॅलेज का निर्माण किया गया; वास्तुकला की अद्भुत मिसाल इस इमारत की संरचना उस समय के लाहौर के मेयो स्कूल आफ आट्र्स के पिा्रंसिपल भाई राम सिंह ने प्रसिद्ध सिविल इंजीनियर धर्म सिंह गरजाखिया की सहायता से तैयार की थी। भाई राम सिंह के अद्भुत कौशल से प्रभावित हो कर ब्रिटिश साम्राज्य ने उनहें मेंर आफ विक्टोरियन आर्ड से सम्मानित किया।
खालासा काॅलेज की भव्यता देख प्रभावित ब्रिटिश शासन ने भाई राम ंिसह को बकिंघम पैलेस लंदन के कुछ भाग को खालसा काॅलेज की तरह तैयार करने को कहा। राजभवन का आभास अपने निर्माण के 125 साल बाद भी भव्यता को बर्करार रखे काॅलेज के के बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार डाॅसुभाष परिहार कहते हैं कि खालसा काॅलेज की वास्तुकला राजपूत, मुगल, ब्रिटिश व सिख भवन र्मिाणकला का उम्दा प्रदर्शन है।
काॅलेज के मेहराबदार बरामदे, गलियारे, झरोखे और उपर से बने गुंबद और मीनारें भवन की भव्यता में चारचांद लगाते हैं। काॅलेज में ने असंख्य गलियारे और झरोखे लखनउ की भूलभुलैया की याद दिलाती है तो काॅलेज की छत बन बने आसामन से बातें करते गंबद लखनउ के रेलवे स्टेशन की।
फिल्मकारों को भी करता है आकर्षित किसी महल सा आभास करवाने वाली यह इमारत तत्कालीन भवन निर्माण कला का बेजेजोड. नमूना है। इसकी खूबसूरती से प्रभावित हो कर कई फिल्मकारों ने यहां विभिन्न फिल्मों की शूटिंग भी है। इसी परिसर में फिल्म वीरजारा की शूटिंग के दौरान सिगरेट पीने पर साहरूख खान पर जुर्माना भी लगाया गया था।
चार रियासतों के नाम पर चार छात्रावास लगीाग 700 एकड में फैले खालसा कालेज में छात्रों रिहाइश के लिए उस समय की चार रियासतों महाराजा जींद, महाराजा नाभा, महाराजा फरीदकोट और महाराजा कपूरथला के नाम से छात्रावास बनाए गए हैं। कालेज में एक अजायबघर बनाया गया है, जिसमें पुरातन हथियार, सिक्के, तैलचित्रों और पुस्तकों का विशाल संग्रह है।
डाॅ. इंद्रजीत सिंह गोगवानी के अनुसार इस अजायब घर में संस्कृत, पंजाबी उर्दू और फारसी की 570 हस्तलिखित पुस्तकों और 1904 में लाहौर से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक अखबार स्त्री सत्संग व खालसा सेवक सहित विभिन्न अखबरों का संग्रह भी है। इन धरोहरों को चिरस्थाई रूप देने के लिए इनका कंप्यूटरीकरण किया गया है, जिसे इंटरनेट से घरबैठे देश-दुनिया में देखा और पढ़ा जा सकता है।
ये रह चुके खालसा काॅलेज के पूर्व स्टूडेंट्स के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों प्रताप सिंह कैरों और दरबारा सिंह, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के संस्थापक तेजा सिंह समुंद्री, जनरल राजिंदर सिंह स्पैरो, समाजवादी नेता सोहन सिंह जोश, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के गांधीवादी नेता निरंजन सिंह तालिब, भारीय संसद के दो पूर्व स्पीकर सरदार गुरदयाल सिंह ढिल्लों और सरदार कुकम सिंह, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस हंसराज खन्ना, भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डाॅमनोहर सिंह गिल, उपनयासकार मुल्क राज आनंद, फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक केदार शर्मा, फिल्म निर्माता व निर्देश भीष्म साहिनी, बीआर चोपड़ा कृत महाभारत में भीम का चरित्र निभाने वले प्रवीण कुमार और भारीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान विशन सिंह बेदी ने इसी काॅलेज से शिक्षा प्राप्त की थी।
स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन का गवाह रहा है काॅलेज काॅलेज के प्रवक्ता डा धर्मेन्द्र सिंह रटौल कहते हैं कि देश की आजादी में भी इस काॅलेज का बहुत बड़ा योगदान रहा है। क्योकि इस काॅलेज के शिक्षक और छात्र दोनों ही आजादी की लड़ाई में भाग लेते रहें, जिस कारण अंग्रेजों ने इस काॅलेज को पंजाबी यूनिर्वसीटी नहीं बनने दिया। देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त होते हुए देखने वाले इस काॅलेज ने भारत विभाजन के दर्द को भी बहुत करीब से देखा है।
भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से आरत आने वाले हिंदू-सिख सहित उन तमाम लोगों के लिए आश्रय स्थल था जो पाकिस्तान में अपना सबकुछ छोड़कर भारत में रहने की लालसा से आए थे। उस समय ततकलीन सरकार ने इसी काॅलेज के परिसर में शरणार्थी शिविर बनाया था; कौन थे भाई राम सिंह बताया जाता है कि भाई राम सिंह गुरदासपुर जिले के कए मध्य वर्गीय बढ़ई परिवार से थे।
घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह पढ-लिख नहीं सके और अपने पुश्तैनी काम में अपने परिजनों का हाथ बटाने लगे। कहा जाता है अमृतसर के एक डिप्टी कमिश्नर का प्यानों खराब हो गया था, जिसे कोई भी कारीगर ठीक नहीं कर पा रहा था। एक दिन भाई राम सिंह ने उस प्यानों को ठीक दिया।
इससे प्रीाावित हो कर उस कमिश्नर ने उन्हें पढ़ने लिखने के लिए प्रेरित किया और
उन्होंने सन 1875 में लाहौर े मेयो स्कूल आफ आटृर्स में दाखिला ले लिया, जहां उन्होंने डाइंग, मैथ और ज्यामिती में दक्षता हासिल की। शिक्षा पूरी करने के ाद भाई कराम सिंह ने इस स्कूल
में अध्यापक की नौकरी कर ली।
भाई राम सिंह ने लाहौर और लायलपुर में बहुत से भवनों का नक्शा तैयार किया; उनका भद्भुत कौशल आज भी इस कालेज की विश्व विख्यात इमारत में जिंदा है। कुछ खास बातें 5 मार्च 1892 में आधारशिला रखी गई। काॅलेज का खाका भाइ्र राम सिंह ने खिचा था। जो 1901 में पूर्ण रूप से बन कर तैयार हुआ। इस काॅलेज का रकबा 700 एकड़ है।
उस समय खालासा काॅलेज के मुख्य भवन के निर्माण में 8 लाख रुपये का खर्च आया था। कहते हैं कि आर्किटेक्ट भाई राम सिंह आंकड़ा इतना सटिक था कि किस तरह के ईंटों की कितनी जरूरत होगी उसी हिसाब से ईंटे बनवाई थी, जो बिना किसी तोड़फोड़ के काॅलेज के निर्माण में लगाई गईं।